पीस डालेंगे मुथूत फाइनेंस के ये हाथी

मुथूत फाइनेंस। दो हाथी सूड़ से सूड़ टकराते हुए। बड़े-बड़े दावे। बड़े-बड़े विज्ञापन। पब्लिक से पैसे जो जुटाने हैं!! आईपीओ इसी सोमवार 18 अप्रैल को खुलेगा। कंपनी कहती है कि वह भारत की सबसे बड़ी गोल्ड फाइनेंसिंग कंपनी है और हर दिन के उसके औसत कस्टमर 67,953 हैं। महीने, साल गिन लीजिए। अरे, जब इतने ही कस्टमर हैं तो पब्लिक को 5.15 करोड़ शेयर जारी करने की जरूरत क्यों पड़ गई? एक तरफ कहती है कि वह 1887 से मौजूद है। फिर कहती है कि वह गोल्ड फाइनेंसिंग के 70 सालों के इतिहास का एक मजबूत ब्रांड नाम है। 124 साल यूं सिमटकर 70 साल कैसे हो गए?

कंपनी आधा-अधूरा सच बताकर निवेशकों को झांसा देने में लगी है। लेकिन इससे भी खराब बात यह है कि उसने प्री-आईपीओ प्लेसमेंट में दस रुपए का शेयर 123 रुपए में दिया है, जबकि आईपीओ में प्राइस बैंड 180 रुपए के आसपास रखा गया है। साफ है कि इश्यू मूल्य करीब डेढ़ गुना बढ़ाकर रखा गया है। सेबी के कड़े नियमों के कारण कंपनी को रिस्क फैक्टर में गिनाना पड़ा है कि बैंकों व निवेश बैंकरों के साथ उसने लोन एग्रीमेंट की शर्तों को तोड़ा है जिससे उसे फौरन सारा धन लौटाना पड़ सकता है। नोट करने की बात है कि यही वे बैंक व निवेश बैंकर हैं जिन्हें खासतौर पर आईपीओ का प्री-प्लेसमेंट किया गया है।

सेबी के पास दाखिल डीआरएचपी (ड्रॉफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) के अनुसार कंपनी या उसके प्रवर्तकों वगैरह के खिलाफ 5610 मुकदमे चल रहे हैं जिनमें से 1702 आपराधिक मामले हैं। आपराधिक मामलों को किनारे रख दें तो अन्य मामलों में कंपनी के ऊपर 68 करोड़ रुपए की देनदारी बनती है। कंपनी का धंधा सोने की वैश्विक कीमतों पर बहुत ज्यादा निर्भर है। अगर सोने में 2008 जैसी कोई तेज गिरावट आई तो कर्जदारों की तरफ से जबरदस्त डिफॉल्ट हो सकता है। नतीजतन कंपनी भारी घाटे में घंस सकती है।

असल में सोना एक ऐसा जिंस है जिसके भाव शुद्ध रूप से सट्टेबाजी से उठते-गिरते है। इधर सुनने में आया है कि लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) जल्दी ही सोने की ट्रेडिंग पर मार्जिन दोगुना करने जा रहा है। इससे सट्टेबाजी थमेगी और सोने के भाव लुढ़क सकते हैं। दूसरी तरफ अगर सोने के भाव बढ़ते रहे तो कर्जदार इसका फायदा उठाकर अपना सोना छुड़ा सकते हैं। इससे कंपनी के कैश फ्लो और मार्जिन पर दबाव बढ़ जाएगा।

कोच्चि की इस कंपनी, मुथूत फाइनेंस के ऊपर अभी 5280 करोड़ रुपए का कर्ज है। आनेवाले सालों में उसकी जो भी कमाई होगी, उसका बड़ा हिस्सा तो इसे उतारने में चला जाएगा और हो सकता है कि किसी दिन वो बीमार कंपनी बन जाए। कंपनी ने डीआरएचपी में खुद कहा है कि पिछले चार सालों से उसका कैश फ्लो ऋणात्मक है और आनेवाले सालों में भी ऐसा रहेगा। कंपनी के ऊपर 400 करोड़ रुपए से ज्यादा का प्रतिभूति-रहित कर्ज है। इसकी अदायगी वह आईपीओ से मिलनेवाली रकम से करेगी।

कंपनी अपनी धंधे के वास्ते धन जुटाने के लिए लोन एसाइनमेंट का तरीका अपनती है। इसमें होता यह है कि कंपनी अगर आपको आपके सोने के बदले ऋण देती है तो वह आपके साथ किए गए लोन एग्रीमेंट को किसी बैंक के पास गिरवी रखकर खुद कर्ज उठाती है। देश का बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 इसकी इजाजत नहीं देता। यह एक तरह से अमेरिका के सब-प्राइम ऋण जैसा मामला है। गुजरात हाईकोर्ट ने 2009 में फैसला दिया था कि बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 बैंकों को अपने ऋण दूसरों पर डालने की इजाजत नहीं देता। वैसे, कंपनी ने प्रॉस्पेक्टस में जिक्र किया है कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

इस धंधे में यह भी होता है कि कंपनी आपका जो सोना गिरवी रखती है, वह उसकी बैलेंसशीट में नहीं दर्ज होता। बैंकों में तो पूरी व्यवस्था होती है कि गिरवी रखे सोने का सही मूल्यांकन होता है। लेकिन मुथूत फाइनेंस के पास रखे सोने का कोई ऑडिट प्रमाणन नहीं होगा। कंपनी खुद तो इसके दम पर विदेश से सस्ता धन जुटा सकती है। लेकिन उसे सोना देकर कर्ज लेनेवालों के लिए मामला भविष्य में भारी पड़ सकता है।

एक स्थिति और है कि मान लीजिए, कोई ग्राहक कर्ज लौटाने में असमर्थ रहता है। तब उसकी भरपाई के लिए कंपनी उसके द्वारा गिरवी रखे जेवराज को नीलाम करेगी। ये नीलामी आमतौर पर स्थानीय सुनारों को की जाती है जो तमाम वजहों से इसका कम दाम देते हैं। नतीजतन, कंपनी को घाटा हो सकता है। वैसे, इस धंधे में अजीब स्थिति है कि सोने के भाव बढ़ने पर ग्राहक इसका फायदा उठाने के लिए अपना सोना छुड़ा सकता है और भाव गिर रहे हों तो उसे लगेगा कि अब डिफॉल्ट कर जाना ही बेहतर होगा। दोनों ही स्थितियों में दबाव कंपनी की लाभप्रदता पर पड़ेगा।

कंपनी ने आईपीओ के डीआरएचपी में यह भी बताया है कि वह पेशन वितरण स्कीम के नए धंधे में उतरने जा रही है। सोना के ऋण और पेंशन का यह घालमेल समझ से बाहर है। कुल मिलाकर हम तो यही सलाह देंगे कि मुथूत फाइनेंस के विज्ञापनों के छलावे में न आएं। इससे दूर रहें। हो सकता है कि लिस्टिंग पर इसमें ऑपरेटर कुछ खेल दिखा दें। लेकिन बाद में निवेशकों को रोना ही पड़ेगा। इसलिए इसके आईपीओ की तरफ झांकने की भी जरूरत नहीं है।

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