खाद्य मंत्री के वी थॉमस अड़ गए हैं कि वे देश से गेहूं का निर्यात नहीं होने देंगे। ऐसा तब जबकि 19 जनवरी तक उनके बॉस रहे कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले ही हफ्ते कहा था कि देश में गेहूं का भारी स्टॉक है और हमें इसके निर्यात की इजाजत दे देनी चाहिए। वैसे, थॉमस ने मंगलवार को कहा कि गेहूं निर्यात के बारे में अगले हफ्ते मंत्रियों का समूह विचार करेगा। मंत्रियों के समूह कीऔरऔर भी

अप्रैल के पहले हफ्ते से गेहूं की सरकारी खरीद चालू है। दिखाने के लिए सरकारी खरीद के लंबे-चौड़े लक्ष्य तय किए गए हैं। लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं।औरऔर भी

देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न तो गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना। भंडारण की किल्लत से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) मुश्किलों का सामना कर रहा है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि काऔरऔर भी

गेहूं की सरकारी खरीद और इसकी बर्बादी की तैयारी कर ली गई है। पहले से ही इफरात पुराने अनाज से भरे गोदाम एफसीआई की सांसत बढ़ाने वाले हैं। गेहूं की नई फसल के भंडारण के लिए गोदामों की भारी कमी है। रबी फसलों की बंपर पैदावार को देखकर खुश होने की जगह सरकारी एजेंसी एफसीआई के होश उड़ गये हैं। सुप्रीम कोर्ट से फजीहत झेलने के बावजूद खाद्य मंत्रालय ने पिछले दो सालों में मुट्ठी भर अनाजऔरऔर भी

रबी फसलों की बुवाई कहीं नमी की कमी से तो कहीं हाल की बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसी के चलते अभी तक रबी सीजन की बुवाई पिछले साल के मुकाबले अभी तक आधी भी नहीं हो पाई है। सबसे चिंताजनक स्थिति गेहूं बुवाई की है। इसका रकबा पिछले साल के मुकाबले सर्वाधिक 30 लाख हेक्टेयर तक पीछे है। बुवाई में विलंब होने से गेहूं की उत्पादकता पर विपरीत असर पडऩे का खतरा है। इसेऔरऔर भी

सामाजिक सरोकार से दूर-दूर तक नाता न रखनेवाला रिलायंस समूह अगर ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकसित करने से भाग खड़ा हो तो कोई बात नहीं, लेकिन टाटा जैसा समूह रुचि न दिखाए तो आश्चर्य होता है। लेकिन हुआ यही। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के गांवों में शहरों जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के सपने को हकीकत में बदलने की कवायद में ग्रामीण विकास मंत्रालय जुट गया है। 248 करोड़ रुपए का पायलट प्रोजेक्ट जनवरी 2011 में चालू होऔरऔर भी

हर गांव में बनाए जाएंगे दलहन के फाउंडेशन बीजों के लघु गोदाम। आधा एकड़ खेत के लिए बीज की आपूर्ति आधे दाम पर की जाएगी। सरकार की कोशिशें कामयाब हुईं तो आनेवाले सालों में रोटी के साथ दाल भी मयस्सर हो सकती है। देश में दाल की कमी और उसकी बढ़ती कीमतों से परेशान सरकार सारे विकल्पों को आजमाने में जुट गई है। इसके तहत पहले दलहन ग्राम और अब बीज ग्राम बसाने की योजना पर अमलऔरऔर भी

हड्डियों के कमजोर होने का खतरा, दांत पीले पड़कर गिरने का खतरा और ऐसे ही न जाने कितने और बीमारियों का अंदेशा। चौंकिए नहीं, हम धूम्रपान या नशीले पदार्थों की बात नहीं कर रहे। बल्कि यह मसला उस चावल का है जिसमें आर्सेनिक यानी संखिया के अंश मिले हैं। पूर्वी राज्यों के मुख्य भोजन में शामिल बोरो चावल आर्सेनिक की मौजूदगी के कारण अचानक खतरनाक हो गया है। यह जोखिम अन्य चावलों पर लागू नहीं होता है।औरऔर भी

जलवायु परिवर्तन के नुकसान ही नहीं फायदे भी हैं। कृषि क्षेत्र के जानकारों का दावा है कि भारत में खेती को इसका फायदा मिला है। वैश्विक स्तर पर गेहूं व चावल जैसे अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है तो उसके पीछे जलवायु परिवर्तन का भी हाथ है। इस संबंध में हुए अध्ययन से यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के कई हिस्सों का औसत तापमान बढ़ा तो कुछ जगहों पर घटा भी है। कृषिऔरऔर भी

महंगाई पर काबू पाने की कीमत सरकार अब किसानों से वसूलने जा रही है। खेती की लागत बढ़ने के बावजूद वह इस बार खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने नहीं जा रही है। धान का मूल्य किसानों को वही मिलेगा जो पिछले साल मिला था। जबकि दलहन के मूल्य में की गई वृद्धि नाकाफी है। जिंस बाजार में दलहन की जो कीमतें हैं, उसके मुकाबले सरकार ने एमएसपी लगभग एक तिहाई रखा है। सरकार केऔरऔर भी