अशोक लेलैंड: सुस्ती कि टूटती नहीं

अशोक लेलैंड। आजादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने के ख्वाब के साथ 1955 से सक्रिय कंपनी। मालिक हिंदुजा समूह। बस व ट्रक से लेकर डिफेंस व अन्य विशिष्ट कामों के लिए विशेष वाहन। पिछले ही महीने कंपनी हल्के वाहनों के सेगमेंट में ‘दोस्त’ के साथ उतरी है। अशोक लेलैंड का नाम दिखता है हर जगह। कम से कम इस ब्रांड के पांच लाख वाहन सड़कों पर। ए ग्रुप का शेयर। बीएसई-100 में शामिल। लेकिन हाल ऐसा कि सालों-साल से उठता ही नहीं। थोड़ा बहुत बढ़ा भी तो घूम-फिरकर वापस पुराने ठेहे पर आ जाता है।

अशोक लेलैंड का एक रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 50477) में 25.80 रुपए और एनएसई (कोड – ASHOKLEY) में 25.90 रुपए पर बंद हुआ है। इसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर 22.50 रुपए है जहां तक यह इसी साल 19 मई 2011 को गिर गया था। लेकिन यह शेयर चार साल पहले भी कमोबेश इसी स्तर पर था। सितंबर 2007 में इसका औसत भाव 22.85 रुपए था। बाद में वैश्विक मंदी के दौर में दिसंबर 2008 से मार्च 2009 के दौरान दस रुपए से नीचे चला गया था। नीचे में 6.15 रुपए और ऊपर में 9.65 रुपए तक। अप्रैल 2009 से फिर बढ़ने लगा। बढ़ते-बढ़ते पिछले साल 8 नवंबर 2010 को 40.95 रुपए तक पहुंच गया जो इसका पिछले पांच सालों का उच्चतम स्तर है।

असल में अशोक लेलैंड जैसे स्टॉक्स ही शेयर बाजार का नाम मिट्टी में मिला देते हैं जहां इतना कम रिटर्न इतनी सुस्त रफ्तार से मिलता है। चार साल से शेयर टस से मस नहीं हुआ। हां, इस साल से जरूर फर्क पड़ा है क्योंकि कंपनी ने अभी पिछले ही महीने एक पर एक का बोनस शेयर दिया है। 3 अगस्त 2011 तक जिसके पास भी अशोक लेलैंड के शेयर रहे होंगे, उनकी मात्रा बिना कुछ दिए अब दोगुनी हो गई होगी। शेयर का भाव घटकर आधा नहीं हुआ है। जुलाई में 25.50 रुपए था तो अब भी उसी के आसपास है। इस तरह शेयरधारक की पूंजी दोगुनी हो गई क्योंकि उसके पास हर शेयर पर एक नया शेयर मुफ्त में आ गया।

कंपनी ने वित्त वर्ष 2010-11 में 11,117.71 करोड़ रुपए की बिक्री पर 631.30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 4.75 रुपए था। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जून तक की पहली तिमाही में कंपनी की बिक्री 6.28 फीसदी बढ़कर 2495.51 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन शुद्ध लाभ 29.67 फीसदी घटकर 86.25 करोड़ रुपए पर आ गया। इसके बाद स्टैंड-एलोन आधार पर उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस 2.24 रुपए हो गया है। इस तरह उसका शेयर अभी 11.52 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। सवाल उठता है कि जब टाटा मोटर्स का शेयर 5 के पी/ई पर मिल रहा हो तो अशोक लेलैंड के स्टॉक की तरफ झांका ही क्यों जाए?

कंपनी ने अपने भावी विकास का दारोमदार नए हल्के वाणिज्यिक वाहन (एलसीवी) दोस्त पर टिका रखा है। 1.25 टन पेलोड क्षमता के इस मिनी ट्रक की एक्स-शोरूम कीमत चेन्नई में 3.79 लाख से 4.39 लाख रुपए तक है। कंपनी का मानना है कि इस सेगमेंट की सालाना चक्रवृद्धि विकास 2011 से 2015 के बीच 15 फीसदी रहेगी। लेकिन कंपनी निश्चित रूप से देर से जागी है। एलसीवी सेगमेंट पिछले दो साल में जमकर उठ चुका है। वहां टाटा मोटर्स के येस और महिंद्रा एंड महिंद्रा के मैक्सिमो अपनी पैठ बना चुके हैं। यह सच है कि अशोक लेलैंड के दोस्त का पेलोड इन दोनों से थोड़ा ज्यादा है। लेकिन इसके दम पर वह कितनी मार कर पाएगा, इसको लेकर संदेह है।

कंपनी की इक्विटी जून 2011 तक 133.03 करोड़ रुपए थी जो अगस्त में 1:1 के बोनस के बाद इसकी दोगुनी 266.06 करोड़ रुपए हो गई है। इसका 38.61 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 13.53 फीसदी एफआईआई व 16.58 फीसदी डीआईआई के पास है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 2,77,277 है। इसमें से 2,71,462 यानी 97.9 फीसदी शेयरधारकों का निवेश एक लाख रुपए से कम है। लेकिन इनके पास कंपनी के कुल 9.80 फीसदी ही इक्विटी है। प्रवर्तकों से इतर नौ बड़े शेयरधारकों के पास कंपनी की 20.63 फीसदी इक्विटी है। यानी, बहुमत के पास कुछ खास नहीं, जबकि अल्पमत के पास अच्छी-खासी पूंजी। जाहिर है हमारी कंपनियां किसी द्वीप पर नहीं, इसी देश का हिस्सा हैं तो जो पूरे देश का हाल है, वही हाल इनका भी होगा।

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