सारा नकार तो डकार गया, अब क्या!

रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) और बीपी के बीच हुआ करार बाजार का रुख मोड़ देनेवाला विकासक्रम है। लेकिन ट्रेडर और निवेशक अब भी रिलायंस के कंसेट ऑर्डर पर सेबी के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यह मसला अगर सुलझ गया तो कम से कम रिलायंस में कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर तमाम एफआईआई की धारणा पटरी पर आ सकती है।

अब जाकर आखिरकार मैं वित्त मंत्रालय की तरफ से शेयर बाजार को कुछ घरेलू सहयोग या सहारा देने की बात सुन रहा हूं। हां, बाजार को घरेलू सहयोग की जरूरत है और एफआईआई पर हमारी अति-निर्भरता ठीक नहीं है। इसी तरह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की यकीनन जरूरत है और उसे लाया ही जाना चाहिए। लेकिन एफडीआई को घरेलू निवेश से संतुलित करना जरूरी है। नहीं तो करेंसी बाजार की स्थिति भी हमारे शेयर बाजार जैसी हो जाएगी।

आपको याद होगा कि आजादी के बाद के 63 सालों में 2008 इकलौता साल था जब सरकार की तरफ से अवमूल्यन या अधिमूल्यन की कोई चर्चा न होने के बावजूद रुपए की विनिमय दर में 22 फीसदी का लपर-झपर हुआ था। इसकी एकमात्र वजह यह थी कि हम एफआईआई की पूंजी पर ज्यादा ही निर्भर हो गए थे। कम से कम इस मामले में हमें चीन से सबक सीखना चाहिए।

खैर, सरकार की तरफ से राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास के बारे दो-टूक बातें कहीं हैं। प्रधानमंत्री ने भी तस्दीक की है कि वे हर हाल में आर्थिक विकास की गति को कायम रखने के प्रति वचनबद्ध हैं। यह भी लगता है कि काले धन पर सरकार कोई योजना पेश करनेवाली है। इसलिए बजट बाजार के लिए जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही पेश करेगा जिससे कम से कम गिरावट को थामा जा सकेगा।

बाजार इस समय कमोबेश सारे नकारात्मक कारकों का असर सोख चुका है। लेकिन अब मुद्रास्फीति से लेकर मिस्र, कच्चे तेल और राजनीतिक परिदृश्य तक सभी मोर्चों पर तस्वीर साफ होती जा रही है। अब कुल मिलाकर बजट ही एकमात्र वह कारक है जिसको लेकर बाजार में स्पष्टता नहीं है। सवाल उठता है कि बजट ठीकठाक रहा तो हम उसके बाद किन मसलों पर हो-हल्ला मचाएंगे?

सरकार तब सामान्य तरीके से चल रही होगी। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर जेपीसी की रिपोर्ट को आने में तीन साल लग जाएंगे। वो जब आएगी, तभी हलचल मचाएगी। इस तरह बजट के बाद बाजार एक बार फिर इधर-उधर हिलने-डुलने और भटकने के बजाय अपने पैरों पर टिक जाएगा। हो सकता है जिसे कमजोर सरकार कहा जा रहा है, वह सबसे मजबूत सरकार निकल आए और मौजूदा कार्यकाल के बाकी तीन साल मजे से काट जाए। इसलिए मेरा कहना है कि बाजार में जो भारी गिरावट या करेक्शन आया है, उसका इस्तेमाल दीर्घकालिक निवेश के खरीद के अवसर के रूप में किया जाना चाहिए।

दुनिया को बदलने के लिए हमें किसी जादू या चमत्कार की जरूरत नहीं। ऐसा करने की सारी ताकत खुद हमारे अंदर है। वह ताकत है हमारी सोचने की ताकत, कल्पना की ताकत।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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