4800 तक गिरानेवाले भी पलट लिए

सरकार देशी-विदेशी निवेशकों के मनचाहे सुधारों की राह पर चल पड़ी है। रिलायंस-बीपी के करार को कैबिनेट की मंजूरी और सचिवों की समिति द्वारा मल्टी ब्रांड रिटेल में 49 के बजाय 51 फीसदी विदेशी निवेश (एफडीआई) की सिफारिश यूपीए सरकार के साहसी रुख को दर्शाती है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वह विपक्ष के हमले की धार कुंद करने में लगी है। सरकार का यह अंदाज उन चंद बड़े एफआईआई की तरफ से पेश की गई तस्वीर से भिन्न है।

इन सबके ऊपर भारती एयरटेल ने शुल्क दरों में 20 फीसदी वृद्धि कर दी। साफ है कि चक्र का निचला हिस्सा अब ऊपर उठने लगा है। यह तभी संभव है जब अर्थव्यवस्था मजबूती पकड़ रही हो। सरकार ने बीएचईएल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स) के एफपीओ की तैयारी से भी संकेत दिया है कि बाजार अब वापसी करेगा। सरकार कतई नहीं चाहेगी कि एफपीओ की सफलता को एफआईआई, भारतीय बीमा कंपनियों और बड़े सरकारी बैंकों का मोहताज होना पड़े।

उद्योग को कोई चिंता न रहे, इसलिए वित्त मंत्री संसद के मानसून सत्र के पहले दिन एक अगस्त को रतन टाटा से लेकर मुकेश व अनिल अंबानी और कॉरपोरेट क्षेत्र के दूसरे तोप-तमंचों से मिल रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि बाजार पर छाई निराशा अभी गई नहीं है। जैसे ही बाजार बढ़ता है, लोगबाग बेचने पर उतारू हो जाते हैं। टेक्निकल एनालिस्ट कहे जा रहे है कि बाजार में गहरी गिरावट आनी है और निफ्टी को अभी 4850 तक जाना है। निवेशक और ट्रेडर का भरोसा चार्टों पर बढ़ गया है और अमूमन फंडामेंटल्स को नजरअंदाज करने लगे हैं।

हम इसी कॉलम में बार-बार चर्चा कर चुके हैं कि मार्च 2012 तक सेंसेक्स का 24,000 तक पहुंचना मूल्यांकन के लिहाज से एकदम वाजिब व तर्कसंगत है। अब तमाम एफआईआई भी खुलकर इसी सुर में बोलने लगे हैं तो इसकी कुछ स्पष्ट वजह है। वे भी निफ्टी के 4850 तक जाने के पक्ष में थे और उन्होंने जून में इसे अंजाम देने की भरपूर कोशिश की। लेकिन बाजार 5180 से नीचे नहीं गया। एफआईआई समुदाय बड़ी जिद्दी व अतिवादी सोच का है। इसलिए वह निफ्टी को तोड़कर 5000 के नीचे ले जाने में लगा रहा। लेकिन अब उसे अहसास हुआ है कि इस साल जून तक के छह महीनों में लगभग 300 करोड़ डॉलर निकाल लेने के बावजूद वह अपनी कोशिश में बुरी तरह विफल रहा है और अब उसके पास कैश का जखीरा है जबकि बाजार बढ़ने लगा है।

असल में, वे पूरी तरह इस बात से वाकिफ थे कि सरकार लंबे समय तक निष्क्रिय नहीं बैठेगी और अंततः उनके पास भारत में निवेश के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। फिर भी, हर रिपोर्ट यही कह रही थी कि सरकार आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में सफल नहीं होगी और हो सकता है कि वह इस साल का विनिवेश कार्यक्रम शुरू ही न कर पाए। लेकिन दस महीने तक चुप बैठने के बाद सरकार अचानक सक्रिय हो गई है। बीएचईएल, ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और स्टील अथॉरिटी के एफपीओ की राहें खोली जा रही हैं और सरकार के लिए मार्च 2012 तक इन स्तरीय कंपनियों के इश्यू से 40,000 करोड़ रुपए जुटाना मुश्किल नहीं होगा।

इसके अलावा सरकार राजस्व के इंतजाम के लिए और स्पेक्ट्रम बेचने पर गौर कर रही है। उसने आयकर विभाग को काला धन रखनेवालों पर घनघोर छापेमारी से टैक्स जुटाने की हिदायत दी है। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि जिस तरह से सरकार ने कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय व आयकर विभाग को कसा है, वैसे ही रीयल्टी सेक्टर जैसे उद्योगों के लिए अब काला धन रख पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। यह भी संभावना है कि सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए सपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना जरूरी कर दिया जाए। इससे भी काले धन पर अंकुश लगेगा। क्रांतियां अंधेरे के हद से बढ़ जाने पर ही होती हैं। भारत में लगता है कि यह हद आ चुकी है। भ्रष्टाचार व काले धन के पाप का घड़ा भर चुका है। अब उसका फूटना लाजिमी है।

अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति व ब्याज दरों के बढ़ने से भले ही थोड़े वक्त के लिए सुस्ती आई हो। लेकिन अब वह सुधार के रास्ते पर है। खाद्यान्नों के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद खाद्य मुद्रास्फीति नीचे आ चुकी है। बहुत संभव है कि बैंकों व उद्योग के दबाव में अब ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला रोक दिया जाए। वैसे भी, सिस्टम में लिक्विडिटी या नकदी की जो स्थिति है, उसके मद्देनजर ब्याज दरों के और बढ़ने की गुंजाइश कम ही नजर आती है। इस हफ्ते 26 जुलाई को मौद्रिक नीति पहली त्रैमासिक समीक्षा में रिजर्व बैंक अगर ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ाता भी है तो हमें लगता है कि यह आखिरी वृद्धि होगी।

कॉरपोरेट क्षेत्र के कामकाज के बारे में अभी तक कोई बड़ी निराशा देखने को नहीं मिली है और हमें नहीं लगता कि ऐसा आगे हो सकता है। हां, इनफोसिस, विप्रो व क्रॉम्प्टन जैसी कुछ कंपनियों ने बाजार की उम्मीद से कमतर नतीजे पेश किए हैं, लेकिन यह अप्रत्याशित नहीं था। वास्तव में अभी तक के नतीजों के अनुसार कंपनियों का लाभ पहली तिमाही में औसतन 17 फीसदी के आसपास बढ़ा है, जबकि बाजार का आकलन 11 फीसदी का ही था। इसलिए जाहिरा तौर पर पूरे साल के लाभ में वृद्धि अनुमान से ज्यादा ही रहेगी। हमने 18 फीसदी सालाना वृद्धि का अनुमान लगाया है, जबकि इकनॉमिक टाइम्स का अध्ययन कहता है कि वृद्धि दर 19 फीसदी हो सकती है। लेकिन लगता है कि यह हकीकत में 20 फीसदी से ज्यादा रहेगी, जबकि बाजार 15 फीसदी की उम्मीद लगाए बैठा है। हमारी बात गांठ बांध लीजिए कि कंपनियों के लाभ में 20 फीसदी वृद्धि हर हाल में सेंसेक्स को मार्च 2012 तक 24,000 पर पहुंचा देगी।

मिड कैप सेगमेंट अब सक्रिय हो गया है और इसकी सक्रियता कायम रहेगी। निफ्टी को बहुत जल्द 6000 और मार्च 2012 तक 6300 तक पहुंचना है। इस दौरान बाजार में रिटेल निवेशकों की भागादारी का बढ़ना तय है। जिन लोगों ने 5500 और 5300 पर एफआईआई की बिकवाली झेल ली है, उन्हें पता है कि निफ्टी उन्हें 8000 तक पहुंचकर निकलने का शानदार मौका देगा। अक्टूबर 2008 में जो हुआ था, इस समय उसी की पुनरावृत्ति हो रही है। बाजार को न समझनेवाले लोग बिजनेस चैनलों पर चिल्लाते रहे कि सेंसेक्स 10,000 को भी पार नहीं कर पाएगा और उनके देखते ही देखते यह 15,000 तक चला गया।

बाजार सब को गलत साबित कर देता है क्योंकि बाजार वो सब कुछ जानता है जो हम नहीं जानते। बाजार जानता है कि सेंसेक्स को 24,000, फिर 30,000 और फिर आनेवाले सालों में 40,000 तक पहुंचना है। जिनको इस पर भरोसा नहीं है, वह उन्हें इस समय निकलने का मौका दे रहा है। चाहो तो निकल लो, चाहो तो बने रहो। मर्जी आपकी। हां, इधर अलगोरिदम ट्रेडिंग बढ़ने से ब्रोकरों के संस्थागत धंधे पर जरूर फर्क पड़ा है। अलगोरिदम ट्रेडिंग तो कंप्यूटर अपने स्वचालित फॉर्मूले के हिसाब से बहुत तेजी से कर लेता है और काफी कम लागत में। ऐसे में पुराने को तो जाना ही पड़ेगा ताकि नए की राह खुल सके।

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