भारतीय कंपनियों के 85% जीडीआर घाटे में, निवेशकों का 52% धन डूबा

भारत की कंपनियां विदेशी निवेशकों के बीच अपनी साख खोती जा रही हैं। इसकी खास वजह है कि साल 2010 में भारतीय कंपनियों द्वारा लाए गए 85 फीसदी जीडीआर (ग्लोबल डिपॉजिटरी रसीद) अपने इश्यू मूल्य से नीचे चल रहे हैं। इनमें निवेशकों का औसत नुकसान 52 फीसदी का है, जबकि इसी दौरान एस एंड पी सीएनएक्स 500 सूचकांक में 7 फीसदी ही गिरावट आई है।

प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिसर्च शाखा ने अपने एक विश्लेषण में यह हकीकत उजागर की है। उसने 2010 में जारी किए गए तमाम जीडीआर के इश्यू मूल्य और 15 सितंबर 2011 के मूल्य के अंतर के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। विदेशी निवेशकों को चूना लगानेवाली कंपनियों में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, मीडिया और कंज्यूमर स्टैपल कंपनियां सबसे आगे हैं। फार्मा कंपनियां भी ज्यादा पीछे नहीं हैं।

साल 2010 में 34 भारतीय कंपनियों ने जीडीआर के जरिए करीब 120 करोड़ डॉलर (5680 करोड़ रुपए) जुटाए थे। इनमें से ज्यादातर मिड कैप व स्मॉल कैप कंपनियां थीं। इन 34 में से केवल पांच का बाजार मूल्य ऑफर मूल्य से ज्यादा है। बाकी 29 में निवेशकों को घाटा हो रहा है। विदेशी निवेशकों को सबसे ज्यादा 148 फीसदी का रिटर्न रेनबो पेपर्स के जीडीआर में मिला है। इसके बाद 141 फीसदी का रिटर्न क्रोमैटिक इंडिया ने दिया है। इसके अलावा केमरॉक इंडस्ट्रीज ने 11 फीसदी फायदा कराया है, जबकि एसई मैन्यूफैक्चरिंग ने 7 फीसदी और जिंदल कोटेक्स ने एक फीसदी रिटर्न दिया है।

चूना लगाने में अव्वल रही है टेलिडाटा टेक्नोलॉजी सोल्यूशंस, जिसका जीडीआर अपने इश्यू मूल्य से 93 फीसदी नीचे चल रहा है। इस क्रम में फारमैक्स व न्यू टेक इंडिया 91 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर हैं। निस्सान कॉपर ने विदेशी निवेशकों का 88 फीसदी तो रिसर्गेयर माइंस ने 87 फीसदी नुकसान कराया है। निवेशकों को चपत लगानेवाली कंपनियों में अक्श ऑप्टिफाइबर, बीएजी फिल्म्स (केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला की कंपनी), भोरुका एल्यूमीनियम, बिड़ला कॉटसिन, बिड़ला श्लोका एजुटेक, बिड़ला पावर सोल्यूशंस, बॉम्बे रेयॉन फैशंस, श्री अष्टविनायक सिनेविजन, कॉक्स एंड किंग्स, जुपिटर बायोसाइंसेज, नेक्टर लाइफसाइंसेज, सूर्या फार्मा और ज़ेनिथ बिड़ला इंडिया लिमिटेड शामिल हैं।

बता दें कि जीडीआर लाने के मामले में दुनिया में भारतीय कंपनियां सबसे आगे हैं। लक्जमबर्ग स्टॉक एक्सचेंज में दिसंबर 2010 तक लिस्टेड 68 फीसदी जीडीआर भारतीय कंपनियों के ही थे। जीडीआर एक तरह का प्रमाणपत्र है जो कंपनी के निश्चित शेयरों के समतुल्य होता है। इनकी स्वतंत्र ट्रेडिंग विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में होती है। साथ ही विदेशी निवेशक इन्हें शेयरों में भी बदलवा लेते हैं।

क्रिसिल रिसर्च में पूंजी बाजार के निदेशक तरुण भाटिया का कहना है, “जब उदीयमान बाजारों के प्रति वैश्विक मिजाज मजबूत रहता है तो कंपनियां आमतौर पर जीडीआर के जरिए धन जुटाना पसंद करती हैं। 2010 में बहुत-सी भारतीय कंपनियां देश के 8 फीसदी आर्थिक विकास और शेयर बाजार के बेहतर हालत के चलते विदेशी निवेशकों को खींचने में कामयाब हो गईं। दूसरे, जीडीआर से जुटाए गए धन के इस्तेमाल के बारे में खास कुछ बताना नहीं पड़ता तो भारतीय कंपनियों के लिए यह रास्ता काफी मुफीद पड़ता है।”

इस तरह की कोई साफ जवाबदेही न होने का ही नतीजा है कि विदेशी निवेशकों से हासिल पूंजी का मूल्य लगभग 47 फीसदी घट चुका है। 5680 करोड़ रुपए जीडीआर से जुटाए गए थे, जबकि इसका बाजार मूल्य इस समय लगभग 3030 करोड़ रुपए पर आ चुका है। ज्यादातर जीडीआर अपने इश्यू मूल्य से 40-60 फीसदी नीचे ट्रेड हो रहे हैं। अब विदेशी निवेशकों के ठंडे रुख को भांपकर भारतीय कंपनियों ने जीडीआर का सिलसिला धीमा कर दिया है। इस साल 2011 में केवल 12 कंपनियों ने जीडीआर से 940 करोड़ रुपए जुटाए हैं।

क्रिसिल रिसर्च के प्रमुख चेतन मजीठिया का कहना है, “2011 में भारतीय इक्विटी बाजार की जबरदस्त वोलैटिलिटी और कमजोर प्रदर्शन ने निवेशकों का मन दबा दिया है। ऊपर से पुराने जीडीआर में हुए नुकसान ने विदेशी निवेशकों को दूर कर दिया है।”

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