चीज हमारी आंखों के सामने रहती है, पहुंच में रहती है, फिर भी नहीं दिखती क्योंकि हमें उसके होने का भान ही नहीं होता। भान होता भी है तो उसे गलत जगह खोजते रहते हैं। कस्तूरी कुंडलि बसय, मृग ढूंढय बन मांहि।
2010-05-09
चीज हमारी आंखों के सामने रहती है, पहुंच में रहती है, फिर भी नहीं दिखती क्योंकि हमें उसके होने का भान ही नहीं होता। भान होता भी है तो उसे गलत जगह खोजते रहते हैं। कस्तूरी कुंडलि बसय, मृग ढूंढय बन मांहि।
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