रूढ़ियों की केंचुल

एक समय की अच्छी बातें आगे जाकर रूढ़ि बन जाती है। मूर्तिभंजक ही मूर्तिपूजक बन जाते हैं। इसलिए जिस तरह सांप अपनी केंचुल उतारता रहता है, उसी तरह हमें भी रूढ़ियों को फेंकते रहना चाहिए।

1 Comment

  1. रूढ़ियों को केंचुल की भाँति फेंक देना चाहिये।

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