भिन्न है दूसरा

बताते हैं कि दूसरों को अपने जैसा समझो। आत्मवत् सर्वभूतेषु। लेकिन दूसरा तो हमसे भिन्न है। स्वतंत्र व्यक्तित्व है उसका। हम जब भी इसे नहीं समझते, अपनी ही बातें थोपने लगते हैं तो तकरार बढ़ जाती है। इसलिए हरेक की भिन्नता का सम्मान जरूरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *