हमारी पूंजी बाजार नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) लगता है मनबढ़ हो गई है। अभी वित्त मंत्रालय की मध्यस्थता में यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी) पर बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए से हुई सहमति को एक दिन भी नहीं बीते हैं कि उनसे 9 अप्रैल के विवादास्पद आदेश से ही नया पंगा निकाल दिया है। उसका कहना है कि जिन 14 जीवन बीमा कंपनियों को उसने यूलिप के लिए सेबी में पंजीकरण जरूरी करने की बात कही थी, वे पुरानी यूलिप पॉलिसियां तो चला सकती हैं, लेकिन इस आदेश के जारी होने यानी 9 अप्रैल 2010 के बाद से वे कोई नई यूलिप पॉलिसी बगैर उसके पास रजिस्ट्रेशन कराए नहीं ला सकतीं।
जाहिर है कि इसने जरा-सा दम भरती बीमा कंपनियों और उनकी नियामक संस्था आईआरडीए के सामने नई मुसीबत पैदा कर दी है। सेबी ने आज जारी ताजा आदेश में कहा है कि मौजूदा यूलिप पॉलिसियों के बारे में तो उसका आदेश स्थगित किया जा रहा है। लेकिन नई यूलिप पॉलिसियों पर वह बदस्तूर जारी रहेगा।
कहा जा रहा है कि यूलिप के निवेश हिस्से की निगरानी को लेकर सेबी की कानूनी स्थिति काफी मजबूत है। दूसरे, उसे मीडिया, वित्तीय विशेषज्ञों व निवेशक संगठनों की तरफ से अच्छा-खासा समर्थन मिला है। इसी माहौल के चलते वह अपने कदम ज्यादा पीछे खींचने को तैयार नहीं है। गौरतलब है कि सोमवार को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ सेबी चेयरमैन सी बी भावे और आईआरडीए चेयरमैन जे हरिनारायण की कई दौर की वार्ता के बाद तय हुआ था कि यूलिप पर नियंत्रण को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट होने तक सेबी का आदेश निरस्त रहेगा।
अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि कानूनी स्पष्टता के लिए नियामक संस्थाएं सिक्यूरिटीज अपीलीय ट्राइब्यूनल (एसएटी) के पास जाएंगी या हाई कोर्ट के पास। इससे पहले ही सेबी ने नए सिरे से बीमा कंपनियों के साथ पंगा ले लिया है। वैसे जानकारों का कहना है कि सेबी के आदेश का कानूनी आधार इतना पुख्ता है कि वह चाहकर भी इसे वापस नहीं ले सकती। सेबी के नए कदम से साफ हो गया है कि वित्तीय क्षेत्र के इन दो प्रमुख नियामकों के बीच युद्ध-विराम अभी दूर की कौड़ी है।