शेयर बाजार समृद्धि बांटने का साधन है, सट्टे का नहीं

अगर अपने शेयर बाजार को आम लोग जुए का अड्डा या कैसिनो जैसा मानते हैं तो यह निराधार नहीं है क्योंकि अब भी रोज ब रोज के तीन चौथाई से ज्यादा सौदों में शेयरों की असली लेन-देन नहीं होती। बस भाव का अंतर ले-देकर कमाई हो जाती है। हमारे टीवी चैनल, बिजनेस अखबार, वेबसाइट भी यही ज्ञान देते रहते हैं कि कितने पर खरीदो, कितने पर बेचो और कहां स्टॉप लॉस लगाना है यानी, दिन के दिन में आप शेयर बाजार से कैसे फायदा कमा सकते हैं। दूसरी तरफ नीति वचन भी छिड़का जाता रहता है कि शेयरों या इक्विटी में निवेश को हमेशा दूरगामी निवेश समझा जाना चाहिए। वचन और हकीकत की इस दूरी के बीच आम लोग शेयरों में पैसा लगाएं भी तो क्यों और कैसे?

पहली बात। शेयर वही कंपनी जारी करती है जो कोई न कोई धंधा कर रही होती है। उसके प्रवर्तक जोखिम उठाकर दिन-रात ऐसा काम करते हैं जहां वे 10 रुपए लगाकर 15-20-25 कमाने का करतब करते हैं। फिर कंपनियां तो लाखों लोग बनाते हैं, लेकिन शेयर जारी करके उन्हें स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराने का ‘जोखिम’ कम ही लोग उठा पाते हैं। जैसे, कॉरपोरेट मामलात मंत्रालय के अनुसार मार्च 2008 तक देश में पंजीकृत कंपनियों की संख्या 7 लाख 88 हजार 691 थी। यह संख्या अब बढ़कर 8 लाख तक तो पहुंच ही गई होगी। लेकिन इनमें से स्टॉक एक्सचेंजों या शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या है मात्र 7882। यानी, कुल पंजीकृत कंपनियों में से एक फीसदी से भी कम कंपनियां अपने शेयर सूचीबद्ध कराती हैं। सूचीबद्ध या लिस्ट कराने का सबसे बड़ा जोखिम यह होता है कि मान लीजिए कोई बाजार से आपकी कंपनी के शेयर भारी मात्रा में खरीदकर उस पर कब्जा कर ले तो आप उसे रोक नहीं सकते। हालांकि इसके लिए नियम-कायदे बने हुए हैं। फिर भी डर तो है ही कि जिस कंपनी को आपने अपनी पूंजी और मेहनत से ख़ड़ा किया, उसे कोई एकबारगी शेयर खरीदकर आपके हाथ से छीन सकता है। इसीलिए कोई सेठ घन्नूलाल या अशरफी मियां करोड़ों कमाने के बावजूद कंपनी बनाकर आम पब्लिक को अपने शेयर नहीं जारी करते।

जाहिर है शेयर बाजार में अपनी कंपनी को लिस्ट कराने वाला अपने स्वामित्व से भी हाथ धो बैठने का जोखिम लेता है तो वह कच्चा व कमजोर आदमी नहीं हो सकता। वह बाजार में आता है इसलिए उसके साथ जोखिम में हाथ बंटानेवालों की तादाद बढ़ जाए। हम जब किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो उसके मालिक व प्रवर्तक का जोखिम भी उसी अनुपात में बांट लेते हैं। इसके साथ ही वो कंपनी को जिस तरह मैनेज कर लाभ कमाता है, उसके हिस्सेदार भी बन जाते हैं। कंपनी की साख बढ़ती है तो उसके शेयर की पूछ बढ़ जाती है और उसके शेयर के दाम भी बढ़ जाते हैं। अगर इनफोसिस के संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति का ड्राइवर भी करोड़पति बन गया है तो इनफोसिस की समृद्धि में इसी हिस्सेदारी की बदौलत। दूसरी तरफ चाहे हर्षद मेहता का दौर रहा हो, चाहे आज का, डे-ट्रेडिंग वालों की कभी बरक्कत नहीं होती। जैसे लॉटरी खेलनेवाला हमेशा कंगाल रहता है, उससे थोड़ी-सी बेहतर हालत शेयर बाजार के इन सट्टेबाजों डे-ट्रेडरों की बनी रहती है। धंधा करानेवाला जरूर कमाता रहता है चाहे वे टीवी चैनल हों. ब्रोकर हों या एनालिस्ट।

सीधी-सी बात है कि हमारे-आपके पास मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, उदय कोटक, आनंद महिंदा या कुमार मंगलम बिडला जितनी पूंजी बिना किसी चमत्कार के कभी नहीं आ सकती। ऐसे हजारों उद्यमी हैं जो देश के कोने-कोने में उद्योग-धंधे चला रहे हैं। सरकार ने भी बड़ी-ब़ड़ी कंपनियों के रूप में आधुनिकता के मंदिर खड़े कर रखे हैं। हम नौकरी करने या खेती-बाडी व छोटा-मोटा धंधा करनेवाले लोग इतनी बड़ी कंपनी नहीं खडी कर सकते। लेकिन शेयर बाजार हमें यह मौका जरूर देता है कि हम उनके कौशल व मेहनत से हासिल की गई समृद्धि में हिस्सेदारी कर सकें। यह भी सच है कि कई मानदंड़ों पर खरी उतरनेवाली कंपनियां ही अपने शेयर जारी कर पाती हैं। दूसरे. शेयर जारी करने के बाद उनका घर कांच का हो जाता है, जहां वे कोई चीज छुपा नहीं सकतीं। आप देखना चाहें तो बाजार में लिस्टेड कंपनी की एक-एक रग से वाकिफ हो सकते हैं। हां, इसके बावजूद ठग तो हर जगह होते हैं। अपराधी खत्म हो जाते तो थानों या कोर्ट-कचहरी की जरूरत ही नहीं पड़ती। पूंजी बाजार के लिए भी ऐसे ही दारोगा की भूमिका निभाती है सेबी।

यह भी होता है कि लिस्ट होने के बाद बहुत सारी कंपनियों के शेयरों में ट्रेडिंग ही नहीं होती और उसमें किया गया निवेश फंस जाता है। जैसे, इस समय शेयर बाजार में लिस्टेड कुल कंपनियों की संख्या 7882 है, जबकि औसतन ट्रेडिंग होती है 2923 कंपनियों में। वैसे, इनमें ट्रेडिंग न होने की कई वजहें है। लेकिन अक्सर ये छोटी कंपनियां होती हैं और लंबे-चौड़े वायदों के साथ बाजार में उतरी होती हैं। उनके प्रचार और लालच के झांसे में आकर लोगबाग अपनी पूंजी इन कंपनियों में फंसा देते हैं और फिर रोने लगते हैं। ऐसे लोग शेयर बाजार में न तो ट्रेडर बन पाते हैं और न ही निवेशक।

ऐसे में मेरा सुझाव यह है कि आप खुद को निवेशक मानें, ट्रेडर नहीं। अगर आप बड़ी और स्थापित कंपनियों में निवेश करेंगे तो हर साल बढ़ती उनकी समृद्धि में हिस्सेदार बन सकते हैं। कई साल पहले मेरे एक मित्र के पास रिलायंस के 300 शेयर थे। तब उनकी बेटी केवल दो साल की थी। उन्होंने कहा था कि ये शेयर उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए रख छोड़े हैं। मुझे लगता है कि शेयर बाजार में निवेश को लेकर हमारा यही नजरिया रहे तो हम बड़े सुख-चैन से इस माध्यम का जोखिम उठा सकते हैं। अभी तो अपने शेयर बाजार के बारे में ऐसी बातें बड़ी घिसी-पिटी और निरर्थक लगती है कि यह अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर होता है। कारण, शेयर बाजार क्या, हमारा कोई भी बाजार परिपक्व नहीं हुआ है क्योंकि अभी तक उपभोक्ता और निवेशक दमदार-समझदार नहीं हुआ है। लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कि शेयर बाजार पूंजी की मांग करनेवालों और पूंजी देनेवालों के लिए एक ऐसा मंच है जो पूंजी के बहाव को बचत से उत्पादकता की ओर ले जाता है।

शेयर बाजार में चाल के लिए 30-40 फीसदी सट्टेबाजी यकीनन जरूरी है। लेकिन जो लोग शेयर बाजार को सिर्फ सट्टेबाजी का जरिया ही मानते हैं, उनसे मैं आखिर में सूरदास की इन पंक्तियां के जरिए पूछना चाहता हूं कि आप कामधेनु के रहते हुए भी छेरी के चक्कर में क्यों पड़े हुए हैं …

परम गंग को छांड़ि पियासो, दुरमति कूप खनावै॥
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भावै।
‘सूरदास’ प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥

4 Comments

  1. biklut theek kaha aapne day trading se kabhi koi ameer nahi ban sakta.lakin ye bhi ek fact hai ki market main liquidity badhane k liye bhi ye trader jaruri hain.agar sabhi long term investor ho jayein to aapko value buying k mauke kanha mil payenge.isliye day traders ki kurbaniyo ko naman kijiye aur chupchap apna long term portfolio baniye isi main kamai hai.

  2. Thats right, stock market is not just for intrady…. Its basically made for Investments and that is speciffically for Long term Investment….Thats the basic of Indian Stock Market…..

  3. mere manana heki agar sahi jankari hoto intraday jaisa koi bussins nahi simpal sa funda hota he lekin log bahut tenshion se intraday kam karte he aur loss hote he duniyabharke indicter us karte jiska koi faidha nahi hota he aur intraday karna unka kam he jisaki bhuudi shant ho jo sahi faisala le sakta he lalcha na ho money mangement ata ho discipline ho jisme usne hi intraday karna chahi ye

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