यूलिप पर क्या धोबियापाट मारा है सेबी ने!!

आप किसी भी जीवन बीमा कंपनी से कोई भी यूलिप पॉलिसी खरीदिए चाहे बच्चों के लिए, चाहे अपने बुढ़ापे की पेंशन के लिए, उसके दस्तावेज में सबसे ऊपर लिखा रहता है कि इस पॉलिसी के अंतर्गत निवेश पोर्टपोलियो में निवेश का सारा जोखिम पॉलिसीधारक का है। यूलिप में प्रीमियम का तकरीबन 98 हिस्सा इक्विटी या ऋण प्रपत्रों में लगाया जाता है। यही वजह है कि 2008 में शेयर बाजार में गिरावट के बाद यूलिप में पॉलिसीधारकों का लगा धन मूल से भी नीचे चला गया तो सभी कंपनियों के एजेंटों ने यही समझाया कि इसमें जोखिम तो होता ही है। लेकिन निवेशकों की हितों की रक्षा और पूंजी बाजार से जुड़े प्रपत्रों पर नियंत्रण व निगाह रखनेवाली संस्था सेबी ने यूलिप के निवेश के हिस्से के जोखिम को संभालने के लिए आदेश जारी कर दिया कि बीमा कंपनियों को इन उत्पादों के लिए पहले उसके पास पंजीकरण कराना होगा तो बीमा कंपनियां राम-राम चिल्लाने लगी हैं। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य प्रशांत सरन ने बीमा कंपनियों के एतराज का इस मायने में बेहद सटीक जवाब दिया है। पेश है 9 अप्रैल को जारी उनके आदेश के चुनिंदा अंश…

यूलिप एक बीमा उत्पाद है और यह सिक्यूरिटीज कांट्रैक्ट (रेगुलेशन) एक्ट 1956 में दी गई सिक्यूरिटीज की परिभाषा में नहीं आता।

यूलिप की यूनिटों में म्यूचुअल फंडों की यूनिटों के गुण होते हैं। और, म्यूचुअल फंडों की यूनिटें सिक्यूरिटीज कांट्रैक्ट (रेगुलेशन) एक्ट 1956 के अनुच्छेद 2(एच) के तहत दी गई परिभाषा के अऩुसार ‘सिक्यूरिटीज’ हैं। महज इसलिए कि उन्हें यूलिप की यूनिटों का नाम दे दिया गया है, वे ‘सिक्यूरिटीज’ की परिभाषा से बाहर नहीं रखी जा सकतीं।

यूलिप का मुख्य पहलू बीमा कवर का है जिसका वास्ता इंसान की जिंदगी से है। निवेश का अतिरिक्त पहलू जुड़ जाने भर से यूलिप को म्यूचुअल फंड तो नहीं माना जा सकता। इसके अलावा यूलिप में अनिवार्य रूप से बीमा कवर होता है जो हर यूलिप का जरूरी व अभिन्न हिस्सा है।

मैं यहां एक बीमा कंपनी के यूलिप उत्पाद का उदाहरण देना चाहता हूं। इसमें बीमा कवर या सम-एश्योर्ड 15 लाख रुपए का है। इसके लिए कंपनी पॉलिसीधारक से 1.50 लाख रुपए का प्रीमियम हर साल 10 साल के लिए लेती है। वह पहले साल के प्रीमियम से 7500 रुपए बीमा कवर में डालती है और उसके बाद के सालों में यह 3000 रुपए प्रति साल हो जाता है। ध्यान दें, अगर कोई 15 लाख रुपए के बीमा कवर के लिए इसी कंपनी का 10 साल का टर्म प्लान लेता है तो सालाना प्रीमियम आता है 3342 रुपए। जाहिर है यूलिप पॉलिसी में बीमा कवर के लिए प्रीमियम का केवल 2 फीसदी हिस्सा जाता है। दूसरी बीमा कंपनियों के यूलिप उत्पाद भी कमोबेश इसी तरह के हैं। इसलिए यह तर्क बेमानी है कि बीमा कवर यूलिप को मुख्य और अभिन्न हिस्सा है।

आईआरडीए ने यूलिप उत्पादों के लिए विशेष कायदे-कानून बना रखे हैं। इसलिए सेबी सामूहिक निवेश योजनाओं या म्यूचुअल फंडों जैसी व्यापार-योग्य सिक्यूरिटीज के लिए बनाए गए आम कायदे-कानून उन पर नहीं लागू कर सकती।

सेबी एक्ट के अनुच्छेद 11(1) की शर्तों के अंतर्गत सेबी का दायित्व है कि वह सिक्यूरिटीज या प्रतिभूतियों में निवेश करनेवालों के हितों की हिफाजत करे और जो उसे उचित लगे, वैसे उपायों से सिक्यूरिटी बाजार के विकास को बढ़ावा दे और उसका नियंत्रण या नियमन करे। सेबी एक्ट के अनुच्छेद 11(2) में कुछ खास उपाय गिनाए गए हैं जिन्हें 11(1) के प्रावधानों से परे जाकर सेबी अपना सकती है। इसमें से उपाय है म्यूचुअल समेत सामूहिक निवेश स्कीमों के कामकाज का नियमन और पंजीकरण। सेबी ने इसके लिए सेबी (म्यूचुअल फंड) रेगुलेशंस 1996 और सेबी (कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम) 1999 जैसे कई नियमन बना रखे हैं। सेबी एक्ट और उसके तहत बनाए गए रेगुलेशन या नियमन संसद द्वारा बनाए गए विशेष कानून हैं और ऐसे सभी निवेश उत्पाद या निवेश अनुबंध सेबी एक्ट के अंतर्गत सेबी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं जिनमें सिक्यूरीज या प्रतिभूतियों के गुण हैं या जो निवेशक को प्रतिभूति बाजार के जोखिम के दायरे में ला खड़ा करते हैं।

म्यूचुअल फंड की यूनिटें बेरोकरोक ट्रांसफर और ट्रेड की जा सकती हैं जबकि यूलिप में सीमित मकसद के लिए ही यूनिटों के लाभ व अधिकार ट्रांसफर किए जाते हैं। यूलिप में यूनिटों को भौतिक नहीं, महज सांकेतिक तौर पर आवंटित किया जाता है। असल में यूनिटें पॉलिसीधारक के पास हकीकत में होती नहीं हैं। यूलिप में यूनिटें इसलिए बनाई जाती हैं ताकि पॉलिसीधारक को मिलनेवाले लाभ की सही गणना की जा सके।

ऐसा नहीं है कि म्यूचुअल फंडों की सभी यूनिटें बेरोकटोक ट्रांसफर की जा सकती हैं। जैसे, म्यूचुअल फंड की ओपन एंडेड स्कीमों में निवेशक सीधे म्यूचुअल फंड से यूनिटें खरीदता है और म्यूचुअल फंड को ही वापस बेचता है। इसलिए ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड अबाधित रूप से ट्रांसफरेबल नहीं हैं। दूसरे, म्यूचुअल फंड में हमेशा यूनिटें भौतिक रूप में नहीं जारी की जातीं। अमूमन तो होता यह है कि म्यूचुअल फंड निवेशक को उसके खाते का स्टेटमेंट जारी करते हैं।

यूलिप को म्यूचुअल फंडों की तरह ट्रस्ट के रूप में नहीं बनाया जाता। इसका फंड बीमा कंपनी के पास ही रहता है। हां, यह जरूर है कि यूलिप में फंड मैनेजमेंट व फंड मैनेजमेंट शुल्क जैसी चीजें होती हैं। लेकिन महज इतने से किसी जीवन बीमा उत्पाद को म्यूचुअल फंड स्कीम नहीं माना जा सकता।

सेबी एक्ट के अनुच्छेद 12(1बी) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति तब तक म्यूचुअल फंड या अन्य सामूहिक निवेश स्कीम नहीं ला सकता जब तक वह सेबी के पास पंजीकृत न हो। यहां जोर सेबी में पूर्व पंजीकरण का है। इसलिए कोई भी संस्था जो ट्रस्ट के रूप में गठित न की गई हो, वह सेबी के पास पंजीकरण कराए बगैर म्यूचुअल फंड जैसे निवेश उत्पाद नहीं ला सकती। यहां सेबी एक्ट के अनुच्छेद 12(1बी) के पालन के लिए ट्रस्ट का होना कोई शर्त नहीं है, हालांकि म्यूचुअल फंड के रूप में पंजीकरण के लिए यह जरूरी है। इस बारे में संस्था की संरचना या स्वरूप का कोई मायने नहीं है। यूलिप में निस्संदेह म्यूचुअल फंड स्कीमों के तत्व हैं। इसलिए निवेशकों की हितों की रक्षा के लिए जरूरी है कि ऐसे उत्पादों को लाने से पहले सेबी के पास उनका पंजीकरण करा लिया जाए।

यूलिप को बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए से बाकायदा यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर लेकर और वाजिब प्रक्रिया अपनाने के बाद पेश किया जाता है। इसलिए सेबी से रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेशन लेने की जरूरत क्या है?

किसी एक नियामक संस्था या प्राधिकरण से अनुमोदन/रजिस्ट्रेशन ले लेने का मतलब यह नहीं है कि लागू होनेवाले दूसरे कायदे-कानून के संचालक निकाय या नियामक संस्था की शर्तों का पालन न किया जाए।

बीमा के करार सेबी एक्ट के अनुच्छेद 11एए(3) के तहत निर्धारित सामूहिक निवेश स्कीम के दायरे में नहीं आते। यूलिप तो ऐसे बीमा अनुबंध हैं जो इंश्योरेंस एक्ट 1938 के अनुच्छेद 2(11) में बताए गए जीवन बीमा व्यवसाय के तहत आते हैं।

पहली बात कि सामूहिक निवेश स्कीम के गुण सेबी एक्ट के अनुच्छेद 11एए(2) में बताए गए हैं। वो यह कि इसमें निवेश को एक जगह लाया जाता है, निवेशक अपने निवेश के रोज-ब-रोज के नियंत्रण में भागीदार नहीं होते। जबकि अनुच्छेद 11एए(3) के अनुसार सामूहिक निवेश स्कीमों में उस तरह की सभी स्कीमें नहीं आतीं जिनका वित्तीय असर होता है, जैसे गैर-बैंकिंग कंपनियों द्वारा ली गई जमा, बीमा के अनुबंध, पेंशन स्कीम और म्यूचुअल फंड भी। यूलिप उत्पाद व निवेश का मेल हैं। इसलिए यह तर्क कि अनुच्छेद 11एए(3) बीमा अनुबंध को सामूहिक निवेश स्कीम के दायरे से बाहर कर देता है, किसी भी तरह यूलिप को म्यूचुअल फंड रेगुलेशन से मुक्त नहीं करता। दूसरे, भले ही यूलिप इंश्योरेंस एक्ट के अनुच्छेद 2(11) मे बताए गए जीवन बीमा व्यवसाय में आता हो, लेकिन उसके निवेश हिस्से का नियंत्रण व पंजीकरण सेबी के द्वारा किया जाना चाहिए। कई यूलिप स्कीमों में इधर निवेशकों को सबसे ज्यादा एनएवी पर अपनी यूनिटें भुनाने की गारंटी दी जा रही है। इससे फिर साबित होता है कि यूलिप में बीमा और निवेश का मिश्रण होता है। इनकी शर्तों को परखने स्पष्ट हो जाता है कि इनमें सामूहिक निवेश स्कीम और म्यूचुअल फंड के बहुतरे तत्व हैं।

चलिए, अगर मान भी लें कि यूलिप उत्पाद म्यूचुअल फंड जैसे ही हैं तो अभी म्यूचुअल फंड से जुड़े जो कायदे-कानून हैं, उनका पालन यूलिप जारी करनेवाली बीमा कंपनियां कैसे कर सकती हैं? फिर सेबी ने अबी तक यूलिप के बारे में बीमा कंपनियों के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किए हैं तो वह उन्हें किस आधार पर दंडित कर सकती है?

यह कोई माना जा सकनेवाला तर्क नहीं है। सेबी एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियम-कायदों की भावना यह है कि निवेशकों के हितों की हिफाजत व संरक्षण कैसे किया जाए। जो भी संस्था निवेशकों से रकम लेती है उसे नियमों का पालन करना ही पड़ेगा। यूलिप उत्पादों में चूंकि निवेश का बड़ा भाग है इसलिए उन्हें लाने के पहले बीमा कंपनियों को उनका पंजीकरण सेबी के पास कराना होगा। सेबी ने म्यूचुअल फंडों के पंजीकरण और नियमन की व्यापक प्रक्रिया बना रखी है। इसलिए यूलिप के नियमन के लिए सेबी एक्ट के अनुच्छेद 12(1बी) के अंतर्गत अलग से विशेष रेगुलेशन बनाने की जरूरत नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *